सभी किसान भाई धानकी कटाई के बाद हे गेहूँ की खेती करने की तैयारी में लग जाते है। गेहूँ की फसल को रबी की प्रमुख फसल में से एक है। गेहूँ फसल के उत्पादन में हमारा भारत देश का प्रमुख स्थान है। हमारे भारत देश में खाद्यान्न उतपादन में गेहूँ का फसल धान के फसल के बाद दूसरा स्थान है। किसान को गेहूँ के फसल से अनाज के साथ साथ जानवरो को खिलने के लिए अच्छा चारा भी प्राप्त होता है। गेहूँ से हमारे सरीर के लिए विटामिन , प्रोटीन , और कार्बोहइड्रेट जैसे पोषक तत्ब प्राप्त होता है।
हमारे भारत देश में गेहूँ की खेती के लिए पंजाब , हरियाणा , गुजरात , मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , राजस्थान और बिहार जैसे प्रमुख राज्य है। ऐसे हमारे भारत देश में लगभग लगभग सभी राज्यों में गेहूँ की खेती की जाती है। गेहूँ केवल पोष्टिक आहार में नहीं बल्कि केक , बिस्कुट , ब्रेड जैसे कंपनी के लिए महत्वपूर्ण फसल में से एक है। केक , बिस्कुट , ब्रेड जैसे उत्पादकों की मांग बाजार मर बहुत ज़्यदा होता है जिससे गेहूँ से केक , ब्राडे , बिस्कुट बनाने वाली कंपनियां काफी आमदनी कमाती है। इसलिए अगर किसान गेहूँ की खेती सही तरीके और सही समय पर करता है तो उससे बहुत अच्छा उपज होता है। इसलिए आज के इस लेख में मैं आपको गेहूँ की बुआई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी आपको देने की कोशिश करूँगा। अगर अगर आप गेहूँ की खेती करने के वारे में सोच रहे है तो आपको ये लेख खेती करने से सम्बंधित पूरी जानकारी उपलब्ध करने में आपको मदद करेगा।
:- अच्छे किस्मों का चयन
ज़्यदा उपज लेन के लिए अच्छे किस्मों का चयन करना जरुरी होता है। किसान को चुने हुए किस्मों को बुआई के समय तथा उत्पादन की स्थिति के हिसाब से लगाना चाहिए। अगर समय से बुआई वाली किस्म को देरी से तथा देरी से बुआई वाली किस्मों को समय से बोन से उपज में बहुत कमी हो सकती है।
:- (समय पर बुआई वाला किस्में) सिंचित क्षेत्र
एच डी 2967, एच डी 2733, एच डी 2964, एच डी 2687, एच डी 2888, यू पी 2382, एच यू डब्ल्यू 468, के 307(शताब्दी), डब्ल्यू एच 542, डब्ल्यू एच 1105, पी डी डब्ल्यू 314(कठिया), पी डी डब्ल्यू 291(कठिया), पी डी डब्ल्यू 233(कठिया), डी पी डब्ल्यू 621 - 50, पी बी डब्ल्यू 550, पी बी डब्ल्यू 17, पी बी डब्ल्यू 502, और डब्ल्यू एच 896(कठिया)
:- (देर से होने वाली बुआई के किस्में) सिंचित क्षेत्र
पी बी डब्ल्यू 16, पी बी डब्ल्यू 590, पी बी डब्ल्यू 373, डब्ल्यू एच 1021, एच यू डब्ल्यू 510, के 9410(उन्नत हालना), के 423 (गोल्डन हालना) इत्यादि।
:- (समय पर बुआई वाला किस्में) वर्षा आधारित
के 9465, के 9351, एच डी 2888, पी बी डब्ल्यू 396, के 8962, मालवीय 533
:- गेहूँ की खेती करने की लिए जलवायु और मिट्टी
गेहूँ ठंडे मौसम में होने वाला फसल हैं गेहूँ के फसल के लिए प्रतेक अवस्था के लिए अलग अलग तापमान की जरुरत होती हैं। जब गेहूँ के बीज अंकुरित होना शुरू होता हैं तब उसके लिए 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना सही मन जाता हैं और बृद्धि के लिए 27 डिग्री सेंटीग्रेड से ज़्यदा तापमान होने पर पौधे में अच्छे से बृद्धि नहीं हो पाता है। और जब गेहूँ में फूल आने लगता है तब उस समय काम और ज़्यदा तापमान गेहूँ के फसल के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
ऐसे तो गेहूँ की खेती सभी प्रकार के मिट्टी में की जाती हैं लेकिन गेहूँ की ज़्यदा और अच्छी उपज के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी ज़्यदा सही होता हैं। गेहूँ की खेती करने के लिए मिट्टी का P.H. मन 6 से 8 सबसे अच्छा मानाजाता हैं । लेकिन जिस खेत में ज़्यदा पानी होता हैं उस खेत के लिए गेहूँ के फसल के लिए हानिकारक होता हैं जिससे गेहूँ की फसल पीला होका फसल बर्वाद हो जाता हैं कियोंकि गेहूँ के फसल में ज़्यदा पानी नहीं लगता हैं
:- गेहूँ की फसल के लिए भूमि की तैयारी :-
किसी भी फसल को लगाने के लिए भूम की 2 से 3 वार जुताई किया जाता हैं जिससे मिट्टी से खरपतवार ख़तम हो जाता हैं। और जब भूमि में पर्याप्त नमी रहता हैं तब गेहूँ के बीज की बुआई की जाती हैं
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:- गेहूँ की बुआई का समय :-
गेहूँ की बुआई (कार्तिक मास) अक्टूबर और नवम्बर के महीने में किया जाता हैं ।
:- बुआई करने का तरीका
सामान्यतः किसान भाई पारम्परिक तरीके की बीज को छिट कर गेहूँ की बुआई करते हैं जो की वैज्ञानिक तरीके से सही नहीं है। इसी तरीके से बुआई करने पर गुड़ाई, निराई, खरपतवार नियंत्रण और बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है साथ ही ज़्यदा बीज भी लगता है और उपज में कमी भी होता है।
लेकिन अब गेहूँ की बुआई के लिए बहुत तरीके का मशीन बाजार में उपलब्ध हो गया हैं जिससे बुआई करना बहुत आसान हो गया हैं और गेहूँ के बुआई के लागत में भी बहुत कमी आई हैं। तो चलिए कुछ गेहूँ के बुआई में उपयोग होने वाले मशीन के वारे में जानते हैं
गेहूँ के बुआई करने वाले मशीन
:- जीरो टिलेज
यह मशीन का उपयोग धन की हाथ से कटे गए खेत में गेहूँ की बुआई के लिए किया जाना बहुत अच्छा होता हैं । इस मशीन का उपयोग धन की कटाई के बाद उस खेत में उपस्थित नमी का प्रयोग करते हुई बिना जुताई किये बीज और खाद को निश्चित गहराई में एक लाइन से बुआई के लिए किया जाता हैं। जिससे सिचाई, निकाई, कटाई जैसे सभी कामो में बहुत आसानी होता हैं। इस मशीन से गेहूँ की बुआई काम से काम 8 से 10 दिन पहले किया जाता हैं जिससे काम से काम 3 से 4 हजार रूपए प्रति हैक्टर की बचत हो जाती हैं । और किसान इस मशीन का उपयोग करके समय, धन, श्रम, पानी, ईंधन आदि जैसे संसाधनों का बचत कर पता हैं
:- हैप्पी सीडर
इस मशीन का उपयोग कर के धान के फसल का अवशेष वाले खेत को बिना जुताई के ही गेहूँ की बुआई आसानी से कर सकता हैं । और यह मशीन उस धान के अवशेष को बुआई के साथ ही काट कर मिट्टी में दवाने के साथ साथ ही गेहूँ के बीज को एक लाइन से लगा देता हैं । तथा बचे हुई धान के अवशेष मिट्टी में दब कर गेहूँ कर फसल के लिए खाद के रूप में काम करता हैं जिससे गेहूँ का फसल बहुत अच्छा होता हैं।
:- गेहूँ की सिंचाई
गेहूँ के फसल में काम से काम 5 से 6 वार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।
- पहली सिंचाई - बुआई के 21 से 25 दिन पर जब मुख्य जड़ बनना शुरू होता है।
- दूसरी सिंचाई - बुआई के 45 से 50 दिन पर जब कल्ले फूटने की अवस्था में आता है।
- तीसरी सिंचाई - बुआई के 65 से 70 दिन पर जब फसल में गांठ बनना समाप्त होने लगता है।
- चौथी सिंचाई - बुआई के 90 से 100 दिन पर जब फुल आना शुरू होता है।
- पाँचवी सिंचाई - बुआई के 110 से 115 दिन पर जब दाने में दूध आना शरू होता है।
- छठी सिंचाई - बुआई के 120 से 125 दिन पर जब दाना कड़ा होना शुरू होता है।
गेहूँ को हमेसा हलकी सिंचाई की जरुरत होती हैं जो की 6 से 7 घंटे के बाद फसल में पानी ना दिखे। कियोंकी गेहूँ के फसल में ज़्यदा पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं नही तो फसल ज़्यदा पानी से पीला हो कर ख़राब हो जायेगा।
:- गेहूँ के फसल को खरपतवारव से नियंत्रण के लिए
गेहूँ के फसल को खरपतवार से नियंत्रण करना बहुत ही ज़्यदा जरुरी होता हैं नहीं तो गेहूँ के उपज में खरपतवार के कारण 20 से 40 प्रतिसत तक की कमी आती हैं। इसलिए गेहूँ के बुआई के 30 से 35 दिन बाद गेहूँ के फसल से निकाई करके घास और खरपतवार को निकल देना चाहिए जिससे गेहूँ के उपज में बहुत ज़्यदा फायदा होता हैं। ऐसे बाजार में भी बहुत तरीके का खरपतवार नासी दवाइयां आ गयी हैं जिसका छिरकाव करके खरपतवार को आसानी से नस्ट कर पाएंगे। गेहूँ के ज़्यदा उपज के लिए समय पर खरपतवार पर नियंत्रण पाना बहुत जरुरी होता हैं।
:- गेहूँ के फसल में लगने वाले अनेक प्रकार के रोग और कीट
गेहूँ के फसल में बहुत तरह के रोग और कीट लगते हैं जिसमे से प्रमुख कीट जेड़माहो, गुलाबी तना छेदक, दीमक, चौपा आदि किट लगते हैं और अगर समय पर इन सभी कीटों का नियंत्रण नहीं किया गया तो इसका बहुत बड़ा परभाव हमारे फसल पर होता हैं। और इन कीटों के अलावा कुछः रोग भी हैं जिससे गेहूँ के फसल पर प्रकोप बना रहता हैं। जिसमे प्रमुख रोग लूज स्मट रोग, पॉउडर मिल्ड्यू , रतुआ, करलाल बांट आदि जैसे रोग गेहूँ के फसल में लगते हैं। लेकिन इन सभी कीट और रोग से बचाव के लिए फसल की अच्छी देखवल समय से करना चाहिए। अगर किसान भाई को किसी भी रोग के लक्षण दीखता हैं तो सुरु में ही उस रोग का इंतजाम कर लेना चाहिए जिससे रोग ज़्यदा बिकसित ना हो पाए और आपके फसल सुरक्षित रहे।
:- गेहूँ की कटाई, मड़ाई और भण्डारण
जब गेहूँ के दाने में काम से काम 20 से 25 % तक नमी रहता हैं तब फसल को हाथ से कटाई के लिए सही मानी जाती हैं। गेहूँ की कटाई की बाद फसल को खेत में ही 2 से 3 दिन तक सूखने की लिए छोड़ देना चाहिए जिससे मड़ाई का काम सही तरीके से हो पाए। और फिर गेहूँ को अच्छे से सूखा कर भण्डारण कर सकते हैं।
किसान भाई गेहूँ की फसल की कटाई जल्दी करना चाहते हैं तो रीपर बाइंड, कम्बाइन हार्वेस्टर जैसे आदि मशीन का उपयोग करके गेहूँ की कटाई जल्दी कर सकते हैं। ऐसे कम्बाइन हार्वेस्टर एक ही वार में कटाई की साथ साथ फसल की थ्रैशिंग (गहाई) और दाने की सफाई भी साथ साथ करता हैं
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